प्राचीनकाल से ही भारतवर्ष में पंचायतों का अस्तित्व रहा है, यहाँ के सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक जीवन में पंचायत का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। भारत के संविधान में पंचायत राज के महत्व को स्वीकार करते हुये ग्राम पंचायतों का गठन करके पंचायत राज को मूर्त रूप देने के संबंध में संविधान की नीति निर्देशक तत्व के अंतर्गत प्रावधान किया गया है, इसके लिए नियम, निर्देशन, कार्य दायित्व, सशक्तियाँ आदि निर्धारित करने हेतु राज्यों के विधान मण्डल को अधिकृत किया गया है। 73वां संविधान संशोधन के फलस्वरूप संविधान के भाग 9 में पंचायत राज व्यवस्था का प्रावधान कर संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया है, पंचायत राज व्यवस्था 24 अप्रैल 1993 से पूरे देश में लागू है ।
छत्तीसगढ़ का गठन 1 नवम्बर 2000 को मध्यप्रदेश राज्य से विघटित कर किया गया है, भारत के संविधान के 73 वें संशोधन अधिनियम 1992 के अनुरूप राज्य में छत्तीसगढ़ पंचायत राज (संशोधित) अधिनियम,1993 को लागू किया गया है। पूर्व में पंचायत राज व्यवस्था अंतर्गत विभिन्न कानून और व्यवस्थाएँ प्रचलित थी, जिनमें आवश्यक संशोधन कर प्रदेश में पंचायती राज व्यवस्था को सुदृढ़ एवं उपयोगी बनाने हेतु पंचायत राज अधिनियम बनाए गए हैं।
राज्य सरकार ने पंचायत राज अंतर्गत कार्यरत निकायों की वृहद कार्य व्यवस्था, ज़िम्मेदारी तथा कार्य निर्वहन गतिविधियों को दृष्टिगत रखते हुये छत्तीसगढ़ पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के अधीन पंचायत संचालनालय के गठन हेतु मंत्रिपरिषद के व्दारा दिनांक 3 सितम्बर 2012 को निर्णय लिया गया तथा दिनांक 06 सितम्बर 2012 से अस्तित्व में आया है।
पंचायत विभाग में प्रशासकीय नियंत्रण एवं नियमन हेतु मंत्रालयीन स्तर पर अपर मुख्य सचिव, सचिव, उप सचिव, अवर सचिव तथा अन्य अमला कार्यरत हैं, इस विभाग अंतर्गत नीतियों के निर्धारण तथा नियमन के कार्य किए जातें हैं। संचालनालयीन स्तर पर संचालक, अपर संचालक, संयुक्त संचालक, उप संचालक एवं अन्य अमले कार्यरत हैं। ज़िला स्तर पर उप संचालक, ज़िला अंकेक्षक, उप अंकेक्षक एवं खण्ड स्तर पर वरिष्ठ आंतरिक लेखापरीक्षक एवं करारोपण अधिकारी, आंतरिक लेखापरीक्षक एवं करारोपण अधिकारी, सहायक आंतरिक लेखापरीक्षक एवं करारोपण अधिकारी, पंचायत सचिव कार्यरत हैं। पंचायत संचालनालय व्दारा विभागीय योजनाओं के क्रियान्वयन के साथ साथ प्रशासकीय नियंत्रण तथा कार्य सम्बन्धी दिशा निर्देश भी जारी किया जाता है ।